कुछ वर्ष पहले मेरे एक दोस्त का एक्सीडेंट हो गया था। जिसमें उसका पैर/पंजा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। दुर्घटना बाइक चलाते समय हुई थी। दूसरी तरफ भी बाइक थी। वो तो भला हो, उसने मज़बूत जूते पहन रखे थे जिससे पंजा अलग होने की नौबत नहीं आई। क्योंकि जूते ने आधा प्रैशर अपने ऊपर ले लिया था। इसलिए बाइक चलाते समय अनिवार्य रूप से जूते पहनने ही चाहिए। ठीक वैसे ही सीट बैल्ट पीछे बैठने वालों को भी लगानी ही चाहिए।
सड़क पर गढ्ढे हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप शराब पीकर गाड़ी चलाएं, बिना वैध कागज़ के फर्राटा मारें। हालांकि इंश्योरेंस कंपनियों को क्लेम देने की व्यवस्था में सुधार करना चाहिए। क्योंकि भारत में क्लेम की दर, नियमों में जटिटला के चलते बेहद कम है। जिससे इंश्योरेंस कंपनिया बेहद मुनाफे को एंजोय कर रही हैं।
दूसरी ओर साल दर साल की बजाय वन टाइम बीमा की सुविधा शुरू हो जाए और गाड़ी के पुराने होने के हिसाब से क्लेम की व्यवस्था लागू हो जाए तो बेहतर हो सकता है। दूसरा कागज़ न होने पर चालक को डिजिटल रूप से घर से मंगाने की सहूलियत मिल जाए तो और भी अच्छा होगा।
बीच में सुना था कि कागज़ की मोबाइल फोटो भी मान्य है। इसके बारे में किसी को जानकारी हो कमेंट कर दें। साथ ही डीजी लॉकर में कागज़ कैसे रखने हैं इसके बारे में जानकार कमेंट कर दें। दूसरे हर रोज़ हम देखते हैं कि लोग लाल बत्ती की बिल्कुल इज्ज़त नहीं करते, जो़र जो़र से हॉर्न बजाते हैं। कुछ तो बेहद डरावने होते हैं।
आपकी गाड़ी के पीछे कई बार लोगों ने गाड़ी लगाई ही होगी। हालांकि मुझे थोड़ा डर है कि कड़े नियमों से कहीं लॉजिस्टिक इंडस्ट्री पर लॉंग टर्म में बुरा असर न पड़ जाए।
चूंकि लोग फाइन के भय के चलते तिपहिया वाहन, छोटी लोडर गाड़िया या फिर ओला-उबर में गाड़ी के ज़रिए निवेश से बचेंगे जिसका असर ऑटो मोबिल इंडस्ट्री पर पड़ सकता है। हालांकि अगर ऐसा हुआ तो उद्यमी सीधे पीएम को शिकायत करेंगे और कुछ समाधान के लिए कहेंगे।
ट्रेवल और टूरिज़्म व टैक्सी सेवा में ज्यादातर बड़ी संख्या छोटे निवेशकों की है जो कि बड़े फाइन के डर के चलते दूसरी ओर भी रुख कर सकते हैं। चूंकि मोटी किश्त के बाद जो बचेगा अगर वो बतौर फाइन भरना पड़ा और इसकी न्यूज़ फैल गई तो बहुत बड़े स्तर पर इसका असर देखने को मिल सकता है।
(भूपेंद्र सिंह: लेखक https://chaaycoffee.com/ के संस्थापक हैं )