वह एक सुंदर कैफे था जहां मैं काम करता था. कॉफी बनाना, परोसना और टेबल को क्लियर करना मेरा काम था. पहली बार इटेलियन मशीन पर कॉफी बनाना इतना भी सरल काम नहीं होता. दूध और शॉट जल जाता है. यह बात वहां कई साल से खड़ा कैफे का मैनेजर अच्छी तरह जानता है और अच्छी कॉफी पीने वाला भी जानता है कि Cappuccino एक warm कॉफी है. आप लहराता हुआ दूध परोसकर बेवकूफ नहीं बना सकते.
मुझे लगता था कि कॉफी का मतलब है दूध को खौलाना और जैसा भी abstract निकले मिला के पिला दो. मुझे नहीं पता था कि एक दिन मैं सर्टिफाइड ब्रू मास्टर बनूंगा जो सूंघ के बता पाएगा कि कॉफी में कहां दिक्कत है.
यूं तो तमाम ग्राहक आते थे. लेकिन कुछ आगे जाकर आत्मीय दोस्त बन गए. एक डॉक्टर रोज़ सवेरे आती थी. वह दो तीन कॉफी ख़राब कराके ही चौथी कॉफी आराम से पीती थी. अक्सर दोपहर में वो अपने पति के साथ आती थी. पति थोड़ा विनम्र था और बोलता था कि इस बच्चे को क्यों परेशान करती हो. अच्छी कॉफी तो बनाता है. मैं बोलता कि सीख रहा हूं. इंप्रूव कर लूंगा.
बला की खूबसूरत और फिट जब वो आती थी तो कैफे के बड़े पारदर्शी शीशे से दूर से ही गाड़ी से उतरते दिख जाती थी. मेरी सुबह खराब तो होती थी लेकिन उसके परफ्यूम की खुशबू से मूड बढ़िया हो ही रहा होता था कि वो पिल पड़ती “कि रात में सफाई नहीं हुई क्या कैफे कि, तुम क्या कर रहे हो सवेरे से?” देखो यहां ये टेबल कितनी गंदी है.
हम जिन कैफे या रेस्ट्रो में नियमित रूप से जाते हैं वहां अपना थोड़ा सा अधिकार समझने लगते हैं. वहां हमारी एक निर्धारित जगह होती है. स्टाफ को पता होता है कि फलां बंदा कहां बैठेगा. जैसे पिछले 11 सालों में मैंने कभी भी वाइट शुगर इस्तेमाल नहीं की. मजबूरी में कभी किसी ने चाय वाय पिला दी या पी ली हो तो अलग बात है.
तो उसकी टेबल जहां थी उसपर रात को मैंने और एक दोस्त ने बैठकर सिग्नेचर की हाफ मार ली थी. और गलती से वो हरा हाफ टेबल से लगे सोफे के नीचे रह गया था. चूंकि मैं भी रात में उसी सोफे पर सो गया था, यह सोचकर की सुबह तो मुझे ही काम करना है……..
क्रमशः
(भूपेंद्र सिंह: लेखक https://chaaycoffee.com/ के संस्थापक हैं )