सुबह ख़बरें देखते पढ़ते एक नज़र जापान की एक खबर पर पड़ी, जो यह बता रही थी कि जापान में करीब 4000 लोग अकेले में ही मर गए, और उनमें से कुछ के शव तो करीब एक महीने बाद मिले। कहने तो यह खबर थी. लेकिन ध्यान किसी एक चीज़ पर अटक गया वह था ‘अकेलापन’ ।
अब सवाल यही की जापान तो एक बहुत ही प्रगतिशील, उन्नतिवान, टेक्नोलॉजी से परिपूर्ण, एक ऐसा देश जिसने खुद को पुनः स्थापित करके दुनिया को एक मिसाल दी कि तबाही कितनी भी भयावह क्यों न हो, आपका ज़र्रा-ज़र्रा ही ना बर्बाद हो गया हो लेकिन अपनी इच्छाशक्ति, मेहनत और लगातार अथक प्रयासों से कुछ भी कर सकते है और जापान ने यह कर के भी दिखाया। यह तो एक तेज़ रफ़्तार देश है, तो यह इसकी रफ्तार इतनी हो गयी की शायद जिसमे रिश्ते पीछे छूट गए , और बस एक अकेलापन साथ रह गया।
अगर भारत में भी देखा जाए तो ‘ आई लाइक टू लिव अलोन’, ‘हैप्पिली सिंगल’, ‘ वन चाइल्ड’, ‘माय सॉलिट्यूड’, ‘आई कैन टेक केयर ऑफ़ माइसेल्फ अलोन’, ‘इंडेपेंडेंट सिंगल’ इस तरह के वाक्य हमने कहीं ना कहीं सुने ही हैं ,ख़ास कर ‘कॉर्पोरेट’ कहे जाने वाले समाज में, जहां पर युवा अकेले रहने को और खुद के लिए पैसे कमाने को ही अपनी आत्मनिर्भरता समझ रहा है लेकिन धीरे-धीरे वह सम्पूर्ण आत्मनिर्भर ही रह जा रहा है।
पिछले महीने एक खबर ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या सिर्फ अच्छा पैसा कमा लेना ही जीवन है. जब यह खबर सोशल मीडिया पर वायरल हुई कि माइक्रोसॉफ्ट जैसे दिग्गज कंपनी का एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर वीकेंड पर सिर्फ इसलिए ऑटो चलाता है कि वह लोगों से बात कर सके. क्योंकि जो अकेला रहता है वह समझ सकता है कि क्या होता है ‘अकेलापन’।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक खबर के अनुसार लगभग 15 मिलियन बुजुर्ग भारतीय बिल्कुल अकेले रहते हैं और उनमें से लगभग तीन-चौथाई महिलाएं हैं। तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में ऐसे ‘अकेले बुजुर्गों’ का अनुपात और भी अधिक है, जहां 60 वर्ष से अधिक उम्र के ग्यारह में से एक व्यक्ति अकेले रहता है। भारत में हर सात में से एक बुजुर्ग व्यक्ति ऐसे घर में रहता है जहां 60 वर्ष से कम उम्र का कोई नहीं है। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में, बुजुर्ग आबादी का एक चौथाई ऐसे सभी बुजुर्ग घरों में रहता है।
जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में लगभग 15 मिलियन वरिष्ठ नागरिक अकेले रहते हैं। इनमें से लगभग 75% महिलाएं हैं। तमिलनाडु उन राज्यों में से एक है जहां अकेले रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों का अनुपात 1:11 है। भारत में बुजुर्गों का अनुपात 1:7 है, जबकि घर में 60 साल से कम उम्र का कोई नहीं है। जनगणना 2011 में वरिष्ठ नागरिक सदस्यों वाले परिवारों को शामिल किया गया। जारी किया गया डेटा इस प्रकार था: भारत में रहने वाले 25 करोड़ लोगों में से 31.3% के घर में कम से कम एक बुजुर्ग व्यक्ति है।
एक तिहाई ग्रामीण परिवारों में एक वरिष्ठ नागरिक है। इनमें से 28 लाख 60 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं हैं जो अकेले रहती हैं। ग्रामीण भारत में 1.2 करोड़ वरिष्ठ नागरिक ऐसे घर में रहते हैं जहां 60 वर्ष से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति उनके साथ नहीं रहता है।
शहरी क्षेत्रों में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम, 29% है। शहरी क्षेत्रों में 8.2 लाख महिलाएं अकेली रहती हैं जिनकी उम्र 60 वर्ष या उससे अधिक है। शहरी क्षेत्रों में 37 लाख वरिष्ठ नागरिक अपने साथ 60 वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति के बिना रहते हैं।
कुल जनसंख्या के 5.8% के साथ जम्मू और कश्मीर केवल वरिष्ठ नागरिकों वाले परिवारों की सूची में सबसे नीचे है। एक ही प्रकार के घर में रहने वाले लोगों की अधिकतम संख्या 9.2% तमिलनाडु में है।
ऐसे अकेलेपन के किस्से बहुत गहरे है, लेकिन सवाल ये है कि लोग अकेले क्यों रह गए या रहना चाहते है। बुजुर्गो के घर में अकेले पीछे छूट जाने का सबसे बड़ा कारण रोज़गार के कारण किया गया विस्थापन या पलायन है। ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में यह स्थिति आम है, घर का बच्चा जब पढ़ लिख कर शहर नौकरी करने चला जाता है तो कभी वापस नहीं आता। वह वह परदेस में ही अपनी दुनिया बसा लेता है और अपने ही गाँव, घर और उन गलियों और दोस्तों का मेहमान होकर रह जाता है जहाँ उसने कभी अपने पैरो से पूरे गाँव की ज़मीन नाँप दी थी।
युवाओं में अकेलापन सो-कॉल्ड ‘प्रोग्रेसिव’ सोच है जो अकेले रहने को अपनी आज़ादी समझ चुका है। ‘ आई एम् सेल्फ सफ़्फ़िसिएंट’ जैसे शब्द उसके लिए एक शान में पढ़ा गया एक कसीदा है। अविवाहित युवा वर्ग में तो कॉर्पोरेट में रहने के लिए यह स्लोगन तो एक एक्सिस्टेंस आइडेंटिटी सा हो गया है। यह अकेलापन जो एक समय के बाद आपको एक दीमक की तरह खाता है , प्रेमचंद्र जी भी कहते है ‘युवावस्था का अकेलापन चरित्र के लिए घातक है।’ लोग शौक से अकेले रह रहे हैं , और कुछ मजबूरी में। लेकिन लोग अकेले हैं। लेकिन अकेले रहने की एक हीं शर्त है कि सब पीछे ही छूट जाता है। दोस्त, घर, रिश्ते, प्यार, परिवार और बहुत कुछ जब सब पीछे छूट जाता है। रह जाता है तो आज पढ़ी हुई खबर वाला जापान।
डॉ गोविन्द कुमार
(असिस्टेंट प्रोफेसर, मणिपाल यूनिवर्सिटी जयपुर, जयपुर, राजस्थान)