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भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की पोलैंड और यूक्रेन यात्रा का भू-राजनीतिक महत्व

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन यात्रा के दौरान वहां के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के साथ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन यात्रा के दौरान वहां के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के साथ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो देशों, पोलैंड और यूक्रेन की यात्रा के बाद वापस लौट आए हैं। प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा और इस दौरान वहां के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के साथ उनकी तस्वीरों ने वैश्विक शक्तियों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस दृष्टिकोण से इस यात्रा की अहमियत को समझा जा सकता है। रूस और यूक्रेन के बीच लंबे समय से चल रहे विनाशकारी युद्ध के बीच अपनी इस यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने स्पष्ट कहा है कि भारत इस मामले में तटस्थ नहीं है।

आजादी से ही भारत ने एक पक्ष लिया है और वह पक्ष है ‘ वैश्विक शांति’ का। वास्तव में यूक्रेन की राजधानी कीव की यात्रा से करीब छः सप्ताह पहले पीएम मोदी ने रूस की यात्रा की थी। इस यात्रा में भी रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ उन्होंने संघर्ष समाप्ति को लेकर चर्चा की। हालांकि पीएम मोदी की रूस की यात्रा ने यूक्रेन और पश्चिमी देशों में एक प्रतिकूल प्रभाव जरूर देखा गया। पीएम मोदी ने इस यात्रा के दौरान पुतिन को गले लगाया था और इसपर वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की की नकारात्मक प्रतिक्रिया आई थी। ज़ेलेंस्की ने तब कहा था कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता का दुनिया के सबसे खूनी अपराधी से गले मिलना शांति स्थापित करने की कोशिशों के लिए एक बड़ी निराशा वाली बात है। वर्तमान में जब प्रधानमंत्री मोदी कीव की यात्रा से लौटे हैं, तो उनकी इस यात्रा को कूटनीतिक संतुलन स्थापित करने के नजरिए से भी देखा जा रहा है।

जाहिर है कि भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन किया है। हालांकि यह भी उतना ही सत्य है कि इस दौरान भारत-रूस के खिलाफ सीधा रुख अपनाने से भी बचा है। एक संवेदनशील दौर में भारत की यह सावधानीपूर्वक चलने की रणनीति उसके गुटनिरपेक्षता और रणनीतिक स्वायत्तता के सिद्धांतों को दर्शाती है।

रूस-यूक्रेन संघर्ष के प्रति भारत की प्रतिक्रिया उसकी व्यापक कूटनीतिक रणनीति का प्रतीक है। यह कूटनीतिक और रणनीतिक मामलों में स्वायत्तता और शांति की प्रतिबद्धता पर आधारित है। रूस और यूक्रेन दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखते हुए, भारत ने खुद को एक संभावित मध्यस्थ और युद्ध नहीं बल्कि संवाद को आगे बढ़ाने वाले देश के रूप में स्थापित किया है।

शैक्षिक दृष्टिकोण से हजारों भारतीय छात्र चिकित्सा शिक्षा के लिए यूक्रेन जाते हैं। यह भारतीय मेडिकल छात्रों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य बना हुआ है। दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों ने यह सुनिश्चित किया है कि शिक्षा सहयोग का एक प्रमुख क्षेत्र बना रहे। यह प्रक्रिया मौजूदा संघर्ष के बीच भी जारी है। वहीं पिछले कुछ दशकों में भारत की सैन्य हार्डवेयर की 60-70% आपूर्ति रूस से हुई है। ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली जैसे संयुक्त उद्यम और नियमित सैन्य अभ्यास इस रक्षा साझेदारी की गहराई को दर्शाते हैं। रूसी सैन्य प्रौद्योगिकी पर भारत की निर्भरता यूक्रेन संघर्ष पर उसके सावधानीपूर्वक दृष्टिकोण की एक प्रमुख वजह है।

भारत का प्रयास है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत की स्थिति उसके रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने और राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा की आवश्यकता को दर्शाती है। एक ओर, भारत रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में अपने एक पुराने और भरोसेमंद सहयोगी रूस को नाराज नहीं कर सकता। दूसरी ओर, वह पश्चिमी शक्तियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के महत्व को भी समझता है। खासकर अमेरिका, जापान और यूरोपीय देशों के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारियां वह बिंदु हैं, जिनकी वजह से सावधानीपूर्वक आगे बढ़ने की रणनीति अपनानी पड़ रही है। प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के साथ उनकी बैठक वैश्विक शांति के प्रयासों में रचनात्मक भूमिका निभाने की भारत की इच्छाशक्ति को दर्शाती है। संवाद और कूटनीति पर भारत का जोर उसके गुटनिरपेक्षता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के ऐतिहासिक दृष्टिकोण को ही प्रदर्शित करता है।

रूस-यूक्रेन संघर्ष के प्रति भारत की प्रतिक्रिया उसकी व्यापक कूटनीतिक रणनीति का प्रतीक है। यह कूटनीतिक और रणनीतिक मामलों में स्वायत्तता और शांति की प्रतिबद्धता पर आधारित है। रूस और यूक्रेन दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखते हुए, भारत ने खुद को एक संभावित मध्यस्थ और युद्ध नहीं बल्कि संवाद को आगे बढ़ाने वाले देश के रूप में स्थापित किया है।

भारत के लिए चुनौतियां और अवसर

वैश्विक स्तर पर रूस और यूक्रेन के साथ अपने संबंधों को संतुलित करते हुए शांति को बढ़ावा देने का भारत का प्रयास चुनौतियों से भरा हुआ है। संघर्ष की जटिल गतिशीलता और पश्चिमी शक्तियों से मिल रहे दबाव के बीच भारत की कूटनीतिक कोशिशों के लिए बड़ी बाधाएं भी हैं। हालांकि, इसमें भारत के लिए अपने वैश्विक कद को बढ़ाने के अवसर भी छिपे हुए हैं। ऐसे अवसर जिनकी मदद से भारत अंतर्राष्ट्रीय मामलों में एक जिम्मेदार और विश्वसनीय State actor के रूप में उभर सकता है।

(डॉ. रत्नेश कुमार यादव

लेखक अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक विश्लेषक हैं। वे राधा गोविंद विश्वविद्यालय,रामगढ़ (झारखंड) में सहायक आचार्य के रूप में कार्यरत हैं।)

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