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नशा से परे शराब और शायरी की प्रतीकात्मक यात्रा

Amrut, Facebook
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शराब और शायरी का संबंध अत्यधिक पुराना और गहरा है। शराब, शायरों की प्रेरणा का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है और इसे शायरी में विभिन्न रूपों में दर्शाया गया है। शराब को न केवल नशे के प्रतीक के रूप में देखा गया है, बल्कि इसे एक प्रतीकात्मक वस्तु के रूप में भी इस्तेमाल किया गया है, जो शायरों के दिल की बातें बयां करने का माध्यम बना है। यह शेर, ग़ज़ल, और कविताओं में बार-बार आता है, और शायरी के इस तत्व को विस्तार से समझना हमें शायरों के मनोभावों और उनके दर्शन की ओर ले जाता है। शराब की शायरी में प्राथमिक रूप से दो दृष्टिकोण मिलते हैं। पहला दृष्टिकोण यह है कि शराब को नशे के रूप में दिखाया गया है, जहां यह एक मन को मदहोश करने वाला माध्यम बनती है। दूसरा दृष्टिकोण यह है कि शराब को एक माध्यम के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो गहरे भावनात्मक और मानसिक अनुभवों की व्याख्या करने में मदद करता है। दोनों ही दृष्टिकोण शायरी के विभिन्न पक्षों को उभारते हैं और इसके गहरे अर्थ को प्रकट करते हैं। जैसे मीर तकी मीर कहते हैं।

“नाजुकी उस के लब की क्या कहिए

पंखुड़ी इक गुलाब की सी है

मीर उन नीम बाज आंखों में

सारी मस्ती शराब की सी है।”

यहाँ मीर अपने माशूका का श्रृंगारिक वर्णन के लिए शराब का सहारा ले रहे हैं।

एक ही विषय पर छः महान शायरों का नजरिया प्रतीकात्मकता का उत्कृष्ट उदाहरण है। यहाँ शराब का जिक्र धार्मिक और सामाजिक बंधनों से मुक्ति पाने के प्रयास के रूप में किया गया है। यह शेर न केवल शराब पीने की बात करता है, बल्कि इस दुनिया की सच्चाइयों से मुक्ति पाने की भी।

मिर्जा ग़ालिब ने लिखा –

‘ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर

या वो जगह बता दे जहां पर ख़ुदा न हो।’

इक़बाल –

“मस्जिद ख़ुदा का घर है, कोई पीने की जगह नहीं ,

काफिर के दिल में जा, वहाँ पर ख़ुदा नहीं ”

अहमद फ़राज़ –

“काफिर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर वहाँ पर जगह नही,

खुदा मौजूद है वहा भी, काफिर को पता नहीं ”

वासी –

“खुदा तो मौजूद दुनिया में कही भी जगह नही,

तू जन्नत में जा वहाँ पीना मना नहीं ”

साक़ी –

“पीता हूँ ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए और कुछ नही,

जन्नत में कहाँ ग़म है वहाँ पीने में मजा नहीं”

किसी अज्ञात शराबी ने कहा

“हम पीते हैं मज़े के लिए, बेवजह बदनाम गम है,

पुरी बोतल पीकर देखों, फिर दुनिया क्या जन्नत से कम है।”

शराब का उल्लेख शायरी में आध्यात्मिकता के संदर्भ में भी होता है। कई बार शायर शराब का जिक्र उस अनुभूति के लिए करते हैं जो एक आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक होती है। शराब यहाँ एक ऐसी वस्तु बन जाती है जो व्यक्ति को उस वास्तविकता से परे ले जाती है जो उसकी बाहरी दुनिया से परे है।

अहमद फ़राज़ का यह शेर:

“साक़ी से कहो, प्याला, बढ़ा चढ़ाकर भरे,

फुर्सत से कोई बैठे, जो प्यास बुझाए।”

इस शेर में शराब को आध्यात्मिक प्यास बुझाने का माध्यम माना गया है। यहाँ शराब एक प्रतीक है उस सत्य की खोज का, जिसे व्यक्ति अपने भीतर की गहराइयों में पाता है।

शराब पर शायरी में एक और पहलू उसकी अद्वितीयता का है। शराब का सेवन एक ऐसी क्रिया है जो व्यक्ति को उसके वास्तविक अस्तित्व से परे ले जाती है। शायर शराब के माध्यम से उस दुनिया की खोज करते हैं जो वास्तविकता से परे है, एक ऐसी दुनिया जहाँ सब कुछ संभव है।

बशीर बद्र का यह शेर:

“कभी मिली है सूरत-ए-सागर कहीं शराब,

आँखों से पी रहा हूँ, दिल में उतर गई।”

इस शेर में बशीर बद्र ने शराब को एक ऐसी चीज़ के रूप में प्रस्तुत किया है जो वास्तव में साकार नहीं होती, लेकिन उसकी प्रभावशीलता से मना नहीं किया जा सकता। यह शेर यह दर्शाता है कि शराब केवल एक पेय नहीं है, बल्कि एक अनुभव है, एक एहसास है, जो व्यक्ति के दिल और दिमाग पर गहरा असर छोड़ता है।

शराब पर शायरी में सामाजिक और धार्मिक बंधनों का भी उल्लेख होता है। कई बार शायर शराब का उल्लेख समाज के खिलाफ बगावत के रूप में करते हैं। शराब का सेवन यहाँ एक प्रतीकात्मक क्रिया बन जाती है, जिसके माध्यम से शायर समाज के कठोर नियमों और बंधनों को चुनौती देते हैं।

जिगर मुरादाबादी का यह शेर:

“ये जो रात भर का है मेहमां अंधेरा,

सुबह होने तक बिखर जाएगा।

पी ले ऐ दिल के कोई नहीं है,

जो हर लम्हे में ख़बर पाएगा।”

इस शेर में जिगर ने शराब का जिक्र समाज के कठोर और अंधकारमय पक्षों से निजात पाने के तरीके के रूप में किया है। शराब यहाँ एक ऐसी वस्तु बन जाती है जो दिल को समाज के कठोर नियमों से मुक्त करती है।

शायरी में शराब का जिक्र अक्सर प्रेम और दर्द के संदर्भ में होता है। शायर शराब को अपने दर्द को कम करने और अपने प्रेम की तीव्रता को व्यक्त करने का माध्यम मानते हैं। उदाहरण के लिए,

फैज़ अहमद फ़ैज़ का यह शेर:

“दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,

दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई।

पीते थे जिस शबाब की आँखों से हम शराब,

वो शबाब रात भर का था और अब सहर गई।”

इस शेर में फैज़ ने शराब को प्रेम की गहराई और उस दर्द को व्यक्त करने के लिए इस्तेमाल किया है जो प्रेम में मिलती है। उनकी शराब का नशा वास्तव में उस प्रेम का प्रतीक है जो गहराई से महसूस किया गया है, लेकिन अंततः खो गया है।

शायरी में शराब का जिक्र अक्सर जीवन की कड़वाहट, पीड़ा, और अवसाद को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। शराब एक ऐसा माध्यम बन जाती है जिसके द्वारा शायर अपनी भावनाओं, चिंताओं, और संघर्षों को व्यक्त करते हैं। यह एक ऐसी अवस्था का प्रतीक है जहां इंसान अपने दर्द को भुलाने की कोशिश करता है, लेकिन साथ ही साथ यह उस गहराई को भी प्रकट करता है जिसे शराबी शायर खुद से भी छुपाने की कोशिश करता है।

मनीष कुमार गुप्ता

लेखक जनसंचार अध्येता, स्वतंत्र पत्रकार, स्तंभकार और राजनीतिक टिप्पणीकार हैं। वे भारत सरकार के भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली में डॉक्टोरल फेलो हैं।

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