करीब 15 साल से शराब पी रहा हूं, अलग-अलग मौके का हवाला देकर। कभी स्कूल का न्यु ईयर का सेलिब्रेशन तो कभी दोस्तों के साथ ग्रेजुएशन में दाखिला लेने पर से शुरू हुआ सिलसिला और बिना मौके के शराब पीने तक आ गया। सिलसिला शुरू हुआ था शायद टीवी , फिल्मो में सिप सिप लेकर कूल दिखने वाले रोमांचित कर देने वाली कल्पना से , लगता था ये कोई चीज़ होती होगी, चमकीला कांच का ग्लास , थोड़ी सी गहरे पीले रंग की शराब जिनमे पड़े हुए बर्फ़ के कुछ टुकड़े , ये तो ज़रूर ही कोई मजेदार चीज़ होगी तो लड़कपन में ट्राई किया और यहाँ से शरू हुआ हुआ ये सिलसिला कुछ यूँ चला की चलता रहा। ये कारवां जीवन के कई मोड़ो से होकर गुजरा जवानी के इस्तक़बाल से लेकर आज तक की ज़िंदगी के सभी पहलुओं पर इस शराब को साथी बनाया। ग्रेजुएट हुए तो जश्न में शराब पी, पोस्ट ग्रेजुएट हुए तो शराब पी , प्रेमिका बनी तो शराब और जब प्रेमिका गई तो शराब, फिर प्रेमिकाएं आती- जाती रही लेकिन शराब सिर्फ आयी और गयी नहीं। तब नौकरी नहीं थी तो शराब सस्ती थी और मौकों की मोहताज थी और सोचते थे की जब नौकरी लगेगी तो बेमौक़े शराब पिया करूँगा, लेकिन पियूंगा ज़रूर। जब नौकरी लगी तो जैसा सोचा था की अनायास ही जब तब शराब पी लेता हूँ। आज जब मैंने इतनी शराब पी ली तो उम्र के इस पड़ाव पर सोचता हूँ मैंने इतनी शराब क्यों पी ?
क्या यह सब कल्पना से ओत प्रोत था या फिल्मों और विज्ञापनों में देख कर उठा हुआ एक रोमांच। अब मैं पलट कर शराब से हासिल की ओर देखता हूँ तो दिखाई देता है कि हर साल 30 लाख लोगों की मौत सिर्फ शराब पीने से होती है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के अनुसार, दुनिया भर में 2019 में शराब के सेवन के कारण 2.6 मिलियन मौतें हुईं, जिनमें से 2 मिलियन पुरुषों और 0.6 मिलियन महिलाओं की थीं। प्रति 100,000 व्यक्तियों पर शराब से संबंधित मौतों का उच्चतम स्तर डब्ल्यूएचओ के यूरोपीय और अफ्रीकी क्षेत्रों में क्रमशः 52.9 मौतों और प्रति 100,000 लोगों पर 52.2 मौतों के साथ देखा गया है।
कम उम्र (20-39 वर्ष) के लोग शराब के सेवन से असमान रूप से प्रभावित होते हैं. साल 2019 में इस आयु वर्ग के भीतर शराब के कारण होने वाली मौतों का अनुपात (13%) सबसे अधिक है। फिर मैं और गहरी सोच में चला जाता हूँ कि क्या ये जो 30 लाख लोग शराब पीने से हर साल मर रहे हैं, क्या वो सिर्फ अकेले मर रहे हैं, या उनके साथ उनके खून के रिश्ते भी उनके अभाव में मर रहे हैं। अगर एक बाप शराब पीकर मारा तो उसके परिवार को किसने संभाला या एक नव विवाहित की मौत के बाद उसके हमराही का हाथ किसने थामा। अगर एक स्त्री शराब पीकर मरी तो उसके परिवार , पति, बच्चों की देखभाल किसने की और क्यों? चलिए अगर ईश्वर की कृपा से खुद शराब पीकर जिन्दा रहे तो बहुत अच्छी बात है , अमीर ने महँगी शराब पी कोई बात नहीं, लेकिन उसका क्या मध्यमवर्गी का क्या जिसने अपनी आय के 30/40 को शराब में बहा दिया। बीबीसी की एक रिपोर्ट भी यही कहती है. गरीब को शराब से और खतरा है. उसकी गरीबी खराब सेहत के वक्त वह हिम्मत हार जाता है। वो कॉरपरेट मजदूर जो वीकेंड के नाम पर पीने को जीना मान रहे है और महीने के दूसरे हफ्ते से कड़की में गुज़ारा करते है। मानते वो भी है कि इस महीने मैंने इतने रूपए की शराब पी ली, पर कोई बात नहीं, शौक बड़ी चीज़ है।
(लेखक डॉ गोविन्द कुमार, असिस्टेंट प्रोफेसर, मणिपाल यूनिवर्सिटी जयपुर, जयपुर, राजस्थान)