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‘होटलों के बाथरूम में नलों का सिस्टम कन्फ्यूजिंग होता है’

Bhupendra Singh
Bhupendra Singh

भूपेन्द्र सिंह: अधिकांश होटलों के बाथरूम में नलों का सिस्टम इतना कन्फ्यूजिंग होता है कि 15 मिनट माथापच्ची के बाद भी गरम पानी किस नल से निकलेगा पता ही नहीं चलता. कहीं भी घुमाओ या तो पानी आएगा ही नहीं आया तो एक जैसा ही निकलेगा. फिर आराम से बंद नहीं होगा. पता नहीं इतनी संख्या में नल और जटिल प्रणाली क्यों लगा देते हैं.
ऊपर से कहीं से घूमकर आओ और सोचो कि चलो पैर धोकर बिस्तर पर चढ़ेंगे, तो जैसे ही नल चलाने को वाशरूम गए तो टैप से पानी आने की बजाय आपके ऊपर फव्वारा चल पड़ेगा. पता नहीं फव्वारे/शावर को उसी टैप से जोड़ने का मूर्खतापूर्ण विचार किस इंजीनियर का रहा होगा. ऊपर से कहीं कुछ लिखा नहीं, कोई चिन्ह नहीं.
दूसरा टॉयलेट की पिचकारी का संतुलन अधिकांश जगह ठीक नहीं होता और वो सही निशाने पर नहीं लगती. या सही दूरी ही तय करने से पहले ही गिर पड़ती है. कहीं बड़े जतन से हमें ही पोजिशन चेंज करके संतुलन बैठाना पड़ता है. हाथ वाले जेट स्प्रे में भी प्रेशर या तो कम होता है या कहीं इतना ज़्यादा होता है कि ज्यादा देर निशाने पर लगाया तो उल्टा पेट में ही पानी घुस जाता है फिर बैठकर उसको निकालो.
इस विषय पर थोड़ा ध्यान देने की आवश्यकता है और बीच बीच में इसे मालिक को स्वयं चेक करना या विशेषज्ञ की मदद लेनी चाहिए. क्योंकि हम भारतीय केवल पेपर से काम तो चला नहीं सकते ट्रेकिंग जैसी विषम परिस्थितियों को छोड़कर.
अंत में दो सुझाव
1. ठंडे गरम के केवल दो नल और फव्वारे वाला अलग नल.
2. पिचकारी और स्प्रे जेट का वाटर प्रेशर देखते रहो और समय पर बदल दो क्योंकि एक समय के बाद जाम (calcium deposits के कारण) हो जाता है.

(लेखक भारत सरकार में राजभाषा अधिकारी है और समसामयिक विषयों पर लेखन में रूचि रखते हैं.)

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