भारत में “वन नेशन, वन इलेक्शन” का विचार एक बार फिर चर्चा का विषय बना है, जिसमें देशभर में एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने की बात की जा रही है। केंद्रीय कैबिनेट ने पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिशों को मंजूरी दे दी है, जो इस योजना की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। लेकिन इस मुद्दे पर विपक्ष, खासकर कांग्रेस, ने कड़ा विरोध जताया है।
राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इस योजना पर सवाल उठाते हुए कहा, “वन नेशन, वन इलेक्शन संभव नहीं है। इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी, और उनके पास पर्याप्त बहुमत नहीं है। वे इसे सिर्फ अपनी विफलताओं से ध्यान हटाने के लिए कर रहे हैं।” उन्होंने यह भी तर्क दिया कि महिलाओं के आरक्षण बिल को पास किया गया था, लेकिन उसे लागू नहीं किया गया। इसी तरह, “वन नेशन, वन इलेक्शन” भी केवल एक प्रचार का हिस्सा है।
इस योजना के समर्थकों का कहना है कि इससे चुनावों की बार-बार की प्रक्रिया से देश को राहत मिलेगी और चुनावी खर्च में कमी आएगी। इसके अलावा, सरकारों को दीर्घकालिक विकास योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलेगा। लेकिन इसके विरोध में तर्क दिया जा रहा है कि यह स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय मुद्दों के नीचे दबा सकता है, जिससे क्षेत्रीय दलों और उनकी पहचान को नुकसान होगा।
वन नेशन, वन इलेक्शन के लागू होने से पहले संवैधानिक और कानूनी चुनौतियां भी हैं। देश में इतनी बड़ी संख्या में एक साथ चुनाव कराना प्रशासनिक दृष्टिकोण से मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा, कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम बहुदलीय प्रणाली को कमजोर कर सकता है और एक ही दल के वर्चस्व का खतरा बढ़ा सकता है।
इस पर कांग्रेस सांसद ने टिप्पणी की, “यह एक खोखला नारा है, जो केवल जनता को भ्रमित करने के लिए दिया गया है।”