दुःख के मुहब्बत में उस्ताद
” वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान ” पंत जी की ये पंक्तियाँ शायद मेरे नए शौक के संदर्भ में भी सटीक बैठती है. एक दिन किसी दोपहर You Tube पर उस्ताद विलायत खां साहब के साज से विलासखानी तोड़ी राग बजने लगा. राग ऐसा जैसे दुःख से भरा कोई घड़ा हो जो रह रह के छलक रहा हो. उस दिन मेरे मन का भी कोई दुःख खां साहब के सितार से छेड़े हुए राग में समाहित हो गया। बादशाह अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक मियां तानसेन के मृत्यु के दौरान उनके बेटे विलसखान ने यह राग बनायीं थी – किसी के बीत जाने का राग ! यह राग विलायत खान साहब का सबसे पसंदीदा राग था – पता नहीं कौन सा दुःख था उस्ताद को उन्हें सालता रहता था, या फिर उन रागों के भी अपने दुःख थे जो उस्ताद के साज से बहते थे.
मुहब्बत बुरी चीज है
विलासखानी के राग में इतना सम्मोहन था कि मुझे उस साज से मुहब्बत हो गयी. मुहब्बत बुरी चीज है, आपके बारे में जान जाती है कि आप क्या हैं. पिछले कुछ महीनों में ये इतना गहरा हो गया कि एक भी रात बिना रागों – राग मल्हार, राग यमन, राग मालकौंस सुने बिना नहीं बीते। ऐसा लगता गोया सितार से निकलने वाले रगों के ये आलाप कहीं अपने मन के किसी तार पर ओस के मानिंद भावों के लटके हुए पुंज हैं जो आवाज में बिंधे हुए थे.
बढ़ती हुई मुहब्बत
” शौक बड़ी चीज है ” हिंदी उत्पादों के किसी विज्ञापन का यह टाग्लिने अपने इस नए शौक पे भी लागू होता है. इसे अपने जीवन में लाने के लिए मैं सितार खरीदने की सोंची। भारत में सितार बनाने के मुख्यतः दो केंद्र हैं – महाराष्ट्र में पुणे के करीब मिरज और कोलकाता। मिरज में सितार बनाने के बहुत कारीगर हैं जो कई पुश्तों से इस काम में लगे हुए हैं. इस खोजबीन के दौरान मेरी मुलाकात मिरज के जावेद सितार मेकर से हुई. नदीम भाई जो दिवंगत जावेद सितार मेकर के बेटे हैं ने सितार से मेरी इस मुहब्बत को और बढ़ाया। जैसे जैसे मेरी आर्डर दी हुई सितार बनती जाती वो मुझे उसका फोटो भेजते जाते। ऐसा लगता जैसे सितार बनाने के भी अपना राग है, धुन है, उसका भी अपना एक संगीत है, वो भी एक बढ़ती हुई मुहब्बत है.
मुहब्बत इतनी महंगी भी न थी
सितार बनाने में तक़रीबन एक महीने लगते हैं. कद्दू काट कर तुम्बा बनाने से इसके बनने की शुरुआत होती है जो डिजाईन, रंगाई, और इसपे तार के कसने तक जाती है. सितार के मुख्यतः दो प्रकार है – उस्ताद विलायत खान और पंडित रवि शंकर। इसके अलावा पंडित निखिल बनर्जी, उस्ताद सुजात खान और उस्ताद शाहिद परवेज खां साहब के भी सितार हैं। एक अच्छे सितार के लिए जरुरी हो जिससे आप सितार बना रहे हो वो भी उस साज का शागिर्द हो. इस मामले में मैं बहुत खुशनसीब रहा की मेरी मुलाकात नदीम भाई से हुई. वो एक मंझे हुए सितार मेकर हैं और साथ ही वह आम आदमी के पहुँच के भीतर हैं. जहाँ आज कोई सितार एक लाख से ऊपर में आती है, उसी सितार को नदीम भाई बहुत ही जायज दर से आप तक पहुंचाते हैं. आज के बाजारीकरण के दौर में ये जरुरी हैं की मुहब्बत महंगी न हो. अपने कस्टमर के साथ वो ऐसे जुड़ते हैं जैसे कुछ दिन के बाद लगता हो घर के ही सदस्य हैं. आपको हर समय उनके मैसेज की आशा लगी रहती है कि सितार के बारे में कुछ आपको कोई अपडेट मिले। खैर, मेरी सितार कुछ दिनों में मुझ तक पहुँच जाएगी जिसका मुझे बेसब्री से इंतजार है.
घनश्याम मीर
(लेखक शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत है। साथ ही साहित्य, सिनेमा और संगीत में रुचि रखते हैं।)