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पीएम मोदी का CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ के घर जाना क्यों विवाद की वजह बन गया?

नरेंद्र मोदी, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ एवं उनकी पत्नी कल्पना गणेश चतुर्थी के अवसर पर. तस्वीर साभार - X (नरेन्द्र मोदी)

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ के घर जाकर गणेश पूजा में हिस्सा लिया, जिसके बाद यह मुलाकात विवाद का विषय बन गई है। सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी और CJI चंद्रचूड़ को एक साथ पूजा करते देखा जा सकता है। इस घटना ने कई कानूनी विशेषज्ञों के बीच चिंता पैदा कर दी है, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर सवाल उठा रहे हैं।

प्रमुख अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने ट्विटर पर इस मुलाकात की आलोचना की और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के अध्यक्ष कपिल सिब्बल को टैग करते हुए लिखा, “CJI ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच की शक्ति विभाजन को कमजोर कर दिया है। CJI की स्वतंत्रता पर अब भरोसा नहीं रहा। SCBA को इस सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित समझौते की निंदा करनी चाहिए।”

 

इंदिरा जयसिंह का यह बयान इस बात को रेखांकित करता है कि प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश के बीच ऐसी मुलाकातें न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े करती हैं। कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन भारत के संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसे लेकर किसी भी प्रकार का समझौता लोकतंत्र पर गहरा असर डाल सकता है।

प्रसिद्ध वकील और कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, “यह चौंकाने वाला है कि CJI चंद्रचूड़ ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने निवास पर निजी मुलाकात की अनुमति दी। इससे न्यायपालिका को एक गलत संदेश जाता है, जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी रखती है कि सरकार संविधान के दायरे में काम करे। कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक स्पष्ट दूरी होनी चाहिए।”

 

प्रशांत भूषण ने आगे जजों के लिए बनाए गए आचार संहिता का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है, “एक जज को अपने पद की गरिमा के अनुसार एक निश्चित दूरी बनाए रखनी चाहिए। उसे कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जो उसके पद की प्रतिष्ठा के लिए अनुपयुक्त हो।” भूषण का मानना है कि यह मुलाकात जजों की आचार संहिता का उल्लंघन है।

इस घटना पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आईं। शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने X (पहले ट्विटर) पर तीखी टिप्पणी करते हुए लिखा, “संविधान के घर को आग लगी है, घर के चिराग से।” उन्होंने आरोप लगाया कि EVM को क्लीन चिट देने से लेकर महाराष्ट्र की असंवैधानिक सरकार पर सुनवाई में देरी तक, न्यायपालिका का रवैया पक्षपातपूर्ण नजर आता है। राउत ने कहा, “पश्चिम बंगाल के मामलों में न्यायालय ने तुरंत हस्तक्षेप किया, लेकिन महाराष्ट्र के गंभीर मामलों पर कोई चर्चा नहीं हुई। यह सब क्यों हो रहा है? इसकी क्रोनोलॉजी समझिए।”

प्रधानमंत्री मोदी और CJI चंद्रचूड़ की मुलाकात ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर गहन सवाल खड़े कर दिए हैं, खासकर ऐसे समय में जब सर्वोच्च न्यायालय और भाजपा सरकार कई मुद्दों पर अलग-अलग राय रखते हैं। प्रधानमंत्री के प्रोटोकॉल को लेकर भी चर्चा हो रही है, क्योंकि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच इस प्रकार की नजदीकियां संवैधानिक मूल्यों पर गंभीर प्रभाव डाल सकती हैं।

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