नयी दिल्ली (राष्ट्रीय डेस्क): भारतीय रक्षा संपदा सेवा, सैन्य अभियंता सेवा और केंद्रीय जल अभियांत्रिकी सेवा के परिवीक्षाधीन अधिकारियों ने आज (23 जुलाई, 2025) राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु मुलाकात की।
भारतीय रक्षा संपदा सेवा के अधिकारियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति महोदया ने कहा कि तीव्र प्रौद्योगिकी संबंधी परिवर्तन के इस दौर में डिजिटल समाधानों का एकीकरण एक आवश्यकता है। प्रौद्योगिकी संबंधी प्रगति से अवगत रहना और उन्हें अपने कामकाज में लागू करना उनका कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन-आधारित भूमि सर्वेक्षण, उपग्रह इमेजरी और संपत्ति रिकॉर्ड रखरखाव के लिए ब्लॉकचेन अब भविष्य की अवधारणाएं नहीं हैं, वे शासन का हिस्सा बन रहे हैं। श्री मती मुर्मु ने अधिकारियों को सलाह दी कि वे बुनियादी ढांचा विकास में हरित प्रथाओं को अपनाएं, नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों को अपनाएं, अपव्यय को कम करें और छावनियों में जल संरक्षण सुनिश्चित करें।
सैन्य अभियंता सेवा (एमईएस) के अधिकारियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि सैन्य निर्माण के क्षेत्र में उभरते नेत्तृवकर्ताओं के रूप में युवा एमईएस अधिकारियों की न केवल निर्माण करने की, बल्कि जिम्मेदारी के साथ निर्माण करने की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है। श्रीमती मुर्मु ने कहा कि उन्हें सतत विकास को बढ़ावा देने और रक्षा बुनियादी ढांचे के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने यह जानकर प्रसन्नता व्यक्त की कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ के राष्ट्रीय विजन के अनुरूप एमईएस ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत स्वदेशी सामग्री और प्रौद्योगिकियों के उपयोग को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहा है।
केंद्रीय जल अभियांत्रिकी सेवा के अधिकारियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति महोदया ने कहा कि जल संसाधनों का सतत विकास और जल का कुशल प्रबंधन जल सुरक्षा और विकास की कुंजी है, विशेष रूप से बदलते जलवायु रूझानों के मद्देनजर। स्वच्छ पानी उपलब्ध कराकर और जल संरक्षण को बढ़ावा देकर हमारा देश सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है, कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकता है और प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित कर सकता है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि अभियांत्रिकी समाधान प्रदान करके जल संबंधी बुनियादी ढांचे के विकास में केंद्रीय जल अभियांत्रिकी सेवा के अधिकारियों का योगदान देश को प्राकृतिक मानव- निर्मित जल संकटों के प्रति अधिक समायोजन-योग्य बनाएगा।